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कविता

नरक लंडन जैसा ही नगर है

अनसतासिस विस्तोनतिस

अनुवाद - रति सक्सेना


सूरज - भूसा भरा बाज
समंदर - पानी की दीवार
लकवा ग्रस्त रोशनी दूर काँप रही है
मोटरें जगह पार कर रहीं हैं
परछाईं, गतिहीन गलियाँ, इमारतें

लय की हानि
घोंघे की तरह खुलता एक शब्द
और कसाईघर की स्मृति, उसकी
गहरी दृष्टि में कलिया गईं
जो दूसरे समुद्रों को पीछे छोड़ देतीं हैं

वह पुनः प्रोत्साहन की चाहना करता है
जब कि रोशनी उसे नंगा करती है
जब कि दिन उस पर फंदा कसता है

 


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